जब लाल किला पर तिरंगा फहराने से पहले करीबियों ने कर दिया था PM के खिलाफ विद्रोह, निराश हो गई थीं इंदिरा
नई दिल्ली
बात 1969 की है। 03 मई, 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। तब उप राष्ट्रपति वीवी गिरी को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया था। अगले ही महीने यानी अगस्त में 16 तारीख को देश के पांचवें राष्ट्रपति के लिए चुनाव होना तय हुआ था। इस चुनाव में वीवी गिरी ने इस्तीफा देकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। दूसरी तरफ उनके खिलाफ थे कांग्रेस पार्टी के औपचारिक और अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी।
अपनों ने ही कर दिया था विद्रोह
जब ये चुनाव हो रहे थे, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपनी ही पार्टी के नेताओं के बड़े और दिग्गज नेताओं के निशाने पर थीं। उनके खिलाफ तब मोरारजी देसाई, के कामराज, एस के पाटिल, अतुल्य घोष और पार्टी अध्यक्ष निजलिंगप्पा भी थे। इन लोगों ने तब नीलम संजीवा रेड्डी को बतौर कांग्रेस उम्मीदवार खड़ा किया था लेकिन इंदिरा गांधी निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी को राष्ट्रपति बनाना चाहती थीं। कांग्रेस के अंदर दो धड़े बंट चुके थे। एक मोरारजी देसाई और कामराज के नेतृत्व में तो दूसरा इंदिरा गांधी के नेतृत्व में गुट काम कर रहा था।
इंदिरा के विरोध में जनसंघ भी दे रहा था साथ
कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी को तब विपक्षी जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी ने भी अपना समर्थन दे दिया था। ऐसी स्थिति में इंदिरा निराश होने लगी थीं। उन्हें इस बात का डर था कि उनके समर्थित उम्मीदवार वीवी गिरी की हार हो सकती है। हालांकि, कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेता इंदिरा के साथ थे। उनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डीके मिश्रा भी शामिल थे।
इंदिरा ने कहा था- अब पद छोड़ना होगा
16 अगस्त को चुनाव होना था। उससे पहले 15 अगस्त को देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था लेकिन 14 अगस्त से ही कांग्रेस के अंदर हलचलें तेज हो गई थीं। बैठकों का सिलसिला जारी था। 20 अगस्त (राजीव गांधी के जन्मदिन) को राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने वाले थे। इंदिरा को उनके लोगों ने बताया था कि गिरी चुनाव हार रहे हैं। पुपुल जयकर ने अपनी किताब 'इंदिरा गांधी- अ बायोग्राफी' में लिखा है कि गिरी की हार की आशंकाओं से घबराकर तब इंदिरा गांधी ने कहा था कि अब मुझे पद छोड़ना होगा।