छत्तीसगढ़

जानें छत्तीसगढ़ का पूरा राजनीतिक इतिहास, अजीत जोगी से लेकर भूपेश बघेल तक

रायपुर

छतीसगढ़ की 90 विधान सभा सीटों के लिए दो चरणों में 7 और 17 नवंबर को मतदान होंगे। दशकों पुरानी मांग के जवाब में खनिजों से भरे राज्य छत्तीसगढ़ को नवंबर 2000 में मध्य प्रदेश से अलग किया गया था। तब से दो दशकों में राज्य की राजनीति मुख्य रूप से इसके मुख्यमंत्रियों अजीत जोगी, रमन सिंह और भूपेश बघेल के आसपास केंद्रित रही है।

1956 से 2000 तक मध्य प्रदेश में 14 मुख्यमंत्री बने। इनमें से केवल चार छत्तीसगढ़ क्षेत्र से थे – पिता-पुत्र रविशंकर शुक्ला-श्यामा चरण शुक्ला, मोतीलाल वोरा और नरेश चंद्र सिंह। नरेश सिंह आदिवासी समुदाय से एकमात्र सीएम थे और वह 1969 में केवल 12 दिनों के लिए सीएम की कुर्सी पर बैठे थे।

कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अजीत जोगी को नेता चुना गया

जैसे ही नये राज्य का निर्माण हो रहा था, कई लोग इसका श्रेय लेने के लिए सक्रिय हो गये। उनमें से प्रमुख थे मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के बेटे विद्या चरण शुक्ल। मई 1999 में विद्या चरण ने छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा का गठन किया था। जब एमपी का बंटवारा हुआ तो अविभाजित राज्य के सीएम दिग्विजय सिंह थे। नए राज्य में जो 90 सीटें गईं उनमें से कांग्रेस के पास 48 विधायक थे। नए राज्य के गठन के बाद रायपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अजीत जोगी को नेता चुना गया।

अजीत जोगी- कलेक्टर से बने मुख्यमंत्री

छत्तीसगढ़ के सदाबहार राजनेता अजीत जोगी ने 9 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ के पहले सीएम के रूप में शपथ ली। एक आईएएस अधिकारी रहे जोगी ने रायपुर, इंदौर और सीधी जैसे जिलों के कलेक्टर के रूप में काम किया था। जोगी 1986 में तत्कालीन एमपी सीएम अर्जुन सिंह की सलाह पर कांग्रेस में शामिल हुए थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने बीजेपी में दलबदल कराया और उसके 13 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराने में कामयाब रहे।

2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विभाजित थी। विद्याचरण शुक्ल जोगी के साथ तालमेल नहीं बैठा सके और बगावत कर शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा में शामिल हो गए थे। चुनावों में हालांकि, एनसीपी केवल एक सीट जीत सकी लेकिन उसे मिले 7.02 प्रतिशत वोटों ने कांग्रेस को 37 सीटों पर समेट दिया। बीजेपी को 50 सीटों के साथ बहुमत मिला।

अजीत जोगी इस हार को पचा नहीं पाए और खबर आई कि वह बहुमत हासिल करने के लिए विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पार्टी नेतृत्व को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। जोगी मई 2020 में अपनी मौत से पहले तक राजनीति में सक्रिय थे- कभी कांग्रेस के साथ तो कभी अपनी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ।

रमन सिंह

नए राज्य के पहले भाजपा अध्यक्ष प्रमुख ओबीसी नेता ताराचंद साहू थे। जोगी के दलबदल के बाद पार्टी के कई नेता उनसे नाखुश थे और साहू की जगह लेने के लिए केंद्र में तत्कालीन राज्य मंत्री रमन सिंह को भेजा गया था। 2003 का विधानसभा चुनाव रमन सिंह के नेतृत्व में जीता गया और उन्होंने नए सीएम के रूप में शपथ ली।

2008 के चुनावों में, चावल के मुफ्त वितरण की उनकी योजना से उन्हें मदद मिली। 2008 के चुनावों में, कांग्रेस के भीतर जोगी का खेमा अपने कई प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेताओं को हराने में कामयाब रहा और भाजपा ने 50 सीटों की अपनी संख्या बरकरार रखी। 2018 के विधानसभा चुनावों तक, माहौल रमन सिंह के खिलाफ हो गया था। राज्य और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व के भीतर उनके कई दुश्मन थे और 15 साल के कार्यकाल के बाद उन्हें सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा था।

  विधानसभा के चुनाव के बाद सरकार के गठन के समय प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी और दूसरे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को पहले मुख्यमंत्री बनाया गया और बाद में उप चुनाव के बाद वह विधायक बने हैं। सीएम की कुर्सी तक अभी तक तीन नेता पहुंचे। इनमें दो को पहली बार उप चुनाव ने ही सदन में पहुंचाया। वहीं इस परंपरा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तोड़ दिया। वह सीधे पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर पहले विधायक बने इसके बाद सदन में मुख्यमंत्री बनकर पहुंचे हैं। प्रदेश में चुनाव तो चार हुए लेकिन सरकार पांच बार बनी।

 

दिसंबर 2018 में सीएम बने भूपेश बघेल

लगातार तीन विधानसभा चुनाव और 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने महेंद्र कर्मा की हत्या के बाद पहले चरण दास महंत को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया और फिर कुछ ही महीनों में उनकी जगह ओबीसी नेता भूपेश बघेल को नियुक्त किया गया। 2018 के चुनावों के लिए कांग्रेस ने एक नई रणनीति तैयार की, जिसमें नए नेताओं को शामिल किया गया। पार्टी ने 68 सीटों के ऐतिहासिक बहुमत के साथ चुनाव जीता। बीजेपी सिर्फ 15 सीटें जीतने में कामयाब रही। 17 दिसंबर, 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

छत्तीसगढ़ विधानसभा

छत्तीसगढ़ का निर्माण शुरुआत में 16 जिलों, 11 लोकसभा और पांच राज्यसभा सीटों और 90 विधानसभा सीटों के साथ हुआ था। इसकी लगभग एक-तिहाई आबादी आदिवासियों की थी। शुरुआत में 90 विधानसभा सीटों में से 34 आदिवासियों के लिए आरक्षित थीं। परिसीमन के बाद 90 में से 29 सीटें उनके लिए और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। राज्य में अब 33 जिले हैं।

 

विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस ने दिग्गज नेता और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बना दिया है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में टीएस सिंहदेव बाबा के नाम से जाने जाते हैं। वहीं, सरगुजा राजघराने के वह महाराज भी हैं। आइए आपको बताते हैं कि बाबा टीएस सिंहदेव कौन हैं जो चुनावी साल में कांग्रेस के इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश में जन्मे, मध्य प्रदेश में पढ़े लिखे और छत्तीसगढ़ की राजनीति में नंबर दो का चेहरा बने सिंहदेव काफी वरिष्ठ नेता माने जाते हैं। टीएस सिंहदेव का पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है। छत्तीसगढ़ में जब सरगुजा राजघराने का दौर था, तब राज्य में इस परिवार की काफी तूती बोलती थी। यह राजघराना शुरुआत से कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है। सिंहदेव इसी राजघराने के 118वें महाराज हैं।

 

महाराज कहलाना पसंद नहीं

सिंहदेव को राजा या महाराज कहलाना पसंद नहीं है, इसीलिए छत्तीसगढ़ के नागरिक उन्हें टीएस बाबा कहकर भी संबोधित करते हैं। 70 साल के टीएस सिंहदेव 1952 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जन्मे थे। उन्होंने भोपाल के हमीदिया कॉलेज से इतिहास में MA किया है। उनकी राजनीतिक शुरुआत सन 1983 से अंबिकापुर नगरपालिका से मानी जाती है। वह यहां परिषद के पहले अध्यक्ष चुने गए थे।

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