बिहार

कहानी आजादी कीः एक हाथ काट गंगा में बहा दिया, ‘बिहार के शेर’ कुंवर सिंह से घबराते थे अंग्रेज

नई दिल्ली

आजादी की लड़ाई में ऐसे असंख्य लोगों का योगदान रहा जिन्हें हम याद भी नहीं कर पाते। ऐसे कई वीर थे जिनसे अंग्रेज घबराते थे और इसलिए कोई भी धोखा करने से नहीं चूकते थे। ऐसे ही थे बाबू कुंवर सिंह जिन्होंने अंग्रेजी सेना को कई बार धूल चटाई। उन्हें बाबू साहब और तेगवा बहादुर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अंग्रेजों को परास्त करके अपना जगदीशपुर वापस ले लिया था। अंग्रेजी हुकूमत ने उनको जिंदा पकड़ने के लिए उस समय 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कुंवर बाबू से अंग्रेज कितना खौफ खाते थे। अंग्रेज लंबे समय तक उन्हें पकड़ने की कोशिश करते रहे लेकिन कामयाब कभी नहीं हुए।

अंग्रेज अफसर को उतार दिया मौत के घाट
1857 के सैनिक विद्रोह के बाद बहुत सारे सैनिक बाबू कुंवर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। इसके बाद अंग्रेजों ने डनबर को सेना के साथ दानापुर भेजा। यहां डनबर मारा गया। डनबर के मारे जाने की जानकारी मिलने के बाद मेजर विंसेट आयर बक्सर से वापस आरा लौट आया और फिर बीबीगंज का युद्ध हुआ। आयर ने जगदीशपुर पर हमला करके अपने कब्जे में ले लिया। कहा जाता है कि एक अंग्रेज अफसर ने कहा कि शुकर है कुंवर सिंह 40 साल के नहीं हैं। बता दें कि उस दौरान कुंवर सिंह की उम्र 80 के आसपास थी।

कई बार अंग्रेजों को चटाई धूल
जगदीशपुर पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद कुंवर सिंह ने फिर फौज खड़ी कर ली। वह रोहतास, बांदा, ग्वालियर, कानपुर होकर अयोध्या पहुंचे। यहां से आजमगढ़ गए और सेना के साथ पड़ाव डाल दिया। इसके बाद बनरस और प्रयागराज पर हमला कर दिया। उनकी सेना छापामार युद्ध में कुशल थी। अंग्रेज अफसर मिलमैन की सेना पर कुंवर सिंह ने आक्रमण किया और उसे हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद कर्नल डेम्स, मार्ककेर बी कुंवर सिंह से हार गया। कुंवर सिंह के विजय अभियान से कैनिंग बहुत ही बेचैन हो उठा।

भुजा काट गंगा में प्रवाहित कर दी

इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत किसी भी स्तर पर कुंवर सिंह को पकड़ना चाहती थी। अंग्रेजों ने डगलस को भेजा। डगलस भी कुंवर सिंह को नहीं पकड़ पाया। 21 अप्रैल 1858 को जब कुंर सिंह शिवपुर घाट से गंगा नदी पार कर रहे थे तभी उन्हें दाहिने हाथ में गोली लग गई। गोली का जहर ना फैल जाए इस डर से उन्होंने तुरंत तलवार निकाली और अपनी भुजा काटकर गंगा नदी में प्रवाहित कर दी। इसके बाद वह जगदीशपुर में प्रवेश कर गए। कुंवर सिंह के इस साहस को देखकर अंग्रेज डर गए और वहीं से वापस चल गए। भुजा काट देने के बाद भी कुंवर सिंह के शरीर में जहर फैल गया था। वह 26 अप्रैल को स्वर्गवासी हो गए। बाद में उनके छोटे भाई अमर सिंह भी अंग्रेजों के मन में खौफ बनाए रखने में कामयाब रहे।

 

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