रूस-यूक्रेन के बीच होगा युद्धविराम? G20 समिट के बाद रूसी विदेश मंत्री ने बताया राष्ट्रपति पुतिन का प्लान…
भारत की अध्यक्षता में जी20 शिखर सम्मेलन की रूस ने तारीफ की है।
मॉस्को की ओर से रविवार को कहा गया कि यह कई मायनों में महत्वपूर्ण सम्मेलन है, क्योंकि इसके नतीजों ने दुनिया को कई चुनौतियों पर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।
साथ ही ‘ग्लोबल साउथ’ की ताकत और महत्व का प्रदर्शन किया।
मालूम हो कि ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिए किया जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं।
रूसी विदेश मंत्री से पूछा गया कि क्या रूस और यूक्रेन के बीच सीजफायर हो सकता है? इस पर सर्गेई लावरोव ने कहा, ‘हर कोई शांति ही चाहता है।
करीब 18 महीने पहले हम इस संघर्ष को सुलझाने के लिए एक मसौदे पर सहमत हुए थे। हमने इन दस्तावेजो पर हस्ताक्षर भी किए। मगर, एंग्लो-सैक्सन ने जेलेंस्की को इस पर साइन न करने का आदेश दिया।’
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति पुतिन ने हाल ही में कहा कि हमें बातचीत से कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, ऐसी किसी भी चर्चा के लिए जमीनी हकीकत को ध्यान में रखना होगा। साथ ही उन कारणों पर फोकस करना होगा जो नाटो की आक्रामक नीति के चलते दशकों से बने हुए हैं।’
सर्गेई लावरोव ने भारत को लेकर क्या कहा
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत ने यूक्रेन सहित कई मुद्दों पर पश्चिमी देशों को अपना दृष्टिकोण आगे बढ़ाने से रोकने में अहम भूमिका निभाई।
शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र ने स्पष्ट रूप से संदेश दिया कि दुनिया में सैन्य संघर्षों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार हल किया जाना चाहिए। साथ ही पश्चिमी शक्तियां विभिन्न संकटों के समाधान की अपनी अवधारणाओं के साथ आगे नहीं बढ़ पाएंगी।
उन्होंने कहा, ‘यह कई मायनों में महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन है। यह हमें कई मुद्दों पर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है।’
दुनिया में सत्ता के नए केंद्र उभरते देख रहे’
सर्गेई लावरोव ने कहा कि नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन ने वैश्विक प्रशासन और ग्लोबल फाइनेंस में निष्पक्षता की दिशा दिखाई है।
रूस के विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं जी20 के राजनीतिकरण के प्रयासों को रोकने के लिए भारत के प्रति अपना आभार व्यक्त करना चाहता हूं।
पश्चिमी देशों का आधिपत्य नहीं कायम हो पाएगा, क्योंकि हम दुनिया में सत्ता के नए केंद्र उभरते हुए देख रहे हैं।’
लावरोव ने कहा कि पश्चिमी शक्तियों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को सालाना 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करने के अपने वादे पर कुछ नहीं किया है।