23 साल में क्या हुआ ऐसा कि यमुना दिल्ली में हो गई इतनी खतरनाक, बाढ़ की इनसाइड स्टोरी
नई दिल्ली
दिल्ली में आई बाढ़ का पानी धीरे-धीरे कम हो रहा है और जनजीवन जल्द पटरी पर लौटने की उम्मीद है। इससे पहले यमुना ने जितना खतरनाक रूप दिखाया वैसा दिल्लीवालों ने कभी नहीं देखा था। यमुना खतरे के निशान 205.33 मीटर से करीब 3 मीटर अधिक ऊंचाई तक बही। नतीजा यह हुआ कि बाढ़ का पानी लाल किला, आईटीओ, कश्मीरी गेट और सिविल लाइन्स जैसे इलाकों तक पहुंच गया और लाखों लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा। सैलाब को लेकर अब सियासत भी तेज है। बारिश से हथिनीकुंड बैराज तक अलग-अलग कारण गिनाए जा रहे हैं।
यह सच है कि बाढ़ की तात्कालिक वजह हिमाचल से हरियाणा तक तेज बारिश है, जिसकी वजह से नदी में बहुत अधिक पानी आया। कम समय में अत्यधिक बारिश जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। दुनिया इस बात को स्वीकार करती है कि ग्लोबल वार्मिंग में भारतीयों की भूमिका अधिक नहीं है। हालांकि, यमुना को बाढ़ग्रस्त बनाने में हमारी भूमिका जरूर है। यमुना के किनारे और नजदीकी इलाकों में कंक्रीट वाले निर्माण की बाढ़ में बहुत बड़ी भूमिका है।
1992-2015 के बीच बड़ा बदलाव
हिन्दुस्तान टाइम्स ने 1992 और 2015 के बीच यमुना किनारे हुए बदलाव का अध्ययन किया है और डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि किस तरह कंक्रीट में इजाफे ने यमुना को इस हालात में पहुंचा दिया है। नीचे दी गई तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कैसे 23 सालों में लाल रंग (कंक्रीट निर्माण) में इजाफा हुआ है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के क्लाइमेट चेंज इनिशिटिव (ESA-CCI) ने दिखाया है कि कैसे दिल्ली में यमुना किनारे अर्बन इलाके में इजाफा हुआ है। खासकर यमुना के किनारे इसकी सघनता बढ़ी है। कंक्रीट की परत ने जमीन को पानी सोखने से रोक दिया है। यही वजह है कि पानी को कम होने में भी इतना वक्त लग रहा है।
सिर्फ दिल्ली में नहीं हुआ ऐसा
दिल्ली इस समय बाढ़ का प्रकोप झेल रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ दिल्ली में नदी किनारे कंक्रीट बढ़ा है। वैज्ञानिक जॉर्ज एच एलन और टैमलिन एम पवलेस्की की ओर से तैयार किए गए सैटेलाइट आधारित नदी और झीलों के डेटाबेस से एचटी ने यमुना के दोनों किनारों पर पांच किलोमीटर का बफर जोन बनाया। फिर 1992 से 2015 के बीच इस बफर जोन में हुए बदलाव को जांचा गया। विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश तक नदी के किनारे शहरीकरण तेजी से बढ़ा है। दिल्ली में 1992 में इस बफर जोन का आधा हिस्सा कंक्रीट वाला हो चुका था तो अब बढ़कर दो तिहाई हो गया है। दूसरे राज्यों में 1992 तक बफर जोन में एक फीसदी से कम कंक्रीट निर्माण था। लेकिन अब तेजी से इजाफा हुआ है। हरियाणा में इसमें 22 गुणा वृद्धि हुई है तो उत्तर प्रदेश में 3.3 गुना और उत्तराखंड में यह 0 फीसदी से बढ़कर 0.3 फीसदी हो गया। यमुना की धारा में ऊपर से नीचे तक हुए इस कंक्रीट निर्माण ने भी दिल्ली की बाढ़ में अहम भूमिका निभाई है। यदि यमुना के किनारे कंक्रीट का इतना निर्माण ना हुआ होता तो पानी का एक बड़ा हिस्सा जमीन ने अपने अंदर खींच लिया होता और दिल्ली समेत कई राज्यों में बाढ़ से इतना अधिक नुकसान ना होता।